महात्मा पूर्ण चंद्र बिरुवा

 1954 में स्थापित टाटा कॉलेज के संस्थापक पूर्णचंद्र बिरूवा की जयंती आज दिनांक-08 जुलाई

                             


पूर्णचंद्र बिरुवा जिसने टाटा कॉलेज की स्थापना कर आदिवासी बहुल कोल्हान के एक हिस्से में लायी थी शैक्षणिक क्रांति


पूर्णचंद्र बिरूवा। पूर्णचंद्र मतलब चंद्रमा का पूर्ण रूप जो कटा-पिटा न हो। जो पूर्ण हो। यानी पूर्णचंद्र अपने नाम के अनुरूप ही पूर्ण थे, अधूरे नहीं। जो भी किया पूर्ण किया। शिक्षा हो या राजनीति सबमें यही पूर्णता दिखी। 


शैक्षणिक क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय तथा अनुकरणीय


टाटा कॉलेज की स्थापना करनेवाले पूर्णचंद्र बिरूवा का जन्म 8 जुलाई 1917 को मंझारी प्रखंड के बड़ा लगड़ा नाम के एक अति पिछड़े गांव में एक प्रतिष्ठित व रसूखदार मानकी परिवार में हुआ था। सबने उसका नाम प्यार से पूर्णचंद्र रखा। तब किसी को आभास भी नहीं था कि बड़ा होकर ये बच्चा एक दिन शहर जाकर क्षेत्र का पहला और सबसे बड़ा कॉलेज की स्थापना कर शैक्षणिक क्रांति ला देगा। पूर्णचंद्र बिरूवा की प्राथमिक शिक्षा मंझारी प्रखंड में ही हुई। फिर एसपीजी मिशन बालक मध्य विद्यालय तथा बाद में जिला स्कूल चाईबासा से पढ़ाई की। इसके बाद स्नातक की पढ़ाई साइंस कॉलेज पटना से पूरी की। कहते हैं कि देश की आजादी के पहले पश्चिमी सिंहभूम से किसी आदिवासी विद्यार्थी के लिए पटना जाकर स्नातक की पढ़ाई करना बेहद कठिन था। लेकिन शिक्षा के प्रति जागरूक पूर्णचंद्र ने इस कठिनाई के बावजूद बैचलर डिग्री की पढ़ाई पूरी की थी। तब वे हो समुदाय के गिने चुने ग्रेजुएट लोगों में शामिल थे।


 कहते हैं कि पटना में रहने दौरान ही उनको एहसास हुआ था कि चाईबासा में भी एक डिग्री कॉलेज होना चाहिए ताकि यहां के लोग भी उच्च शिक्षा ले सके। पटना से लौटने के बाद उसने इस दिशा में अभूतपूर्व कार्य शुरू किया। उसने कॉलेज खोलने की योजना बनायी। कॉलेज खोलने की योजना लेकर वे स्थानीय प्रशासनिक पदाधिकारियों से मिले। योजना बताई। कन्विंस किया। समाजसेवियों व शिक्षाप्रेमियों से भी बात की। शिक्षा के महत्व को समझाया। गांवों में अभियान चलाकर ग्रामीणों को शिक्षा के प्रति जागरूक भी किया। सामर्थ्य के अनुसार आर्थिक मदद की गुहार लगाई। गांव गांव में बैठकें हुईं। नतीजा, कॉलेज भवन बनाने के प्रस्ताव को ग्रामीणों ने स्वीकार कर लिया और स्वेच्छा से चार आना व एक मुट्ठी चावल चंदे में दिया। लेकिन ये पैसे कॉलेज बनाने के लिए नाकाफी थे। लिहाजा इसके लिए टाटा कंपनी से वार्ता की गयी। इसमें पूर्णचंद्र बिरूवा के अलावा हो समाज के शिक्षाप्रेमी, बुद्धिजीवी व स्थानीय प्रशासनिक पदाधिकारी भी शामिल थे। टाटा कंपनी ने निगमित सामाजिक दायित्व के तहत चाईबासा की धरती पर पहला डिग्री कॉलेज के लिए शानदार भवन बनाने की हामी भर दी। इस शर्त के साथ कि कॉलेज का नाम टाटा रखा जाए। हुआ भी ऐसा ही। टाटा कंपनी ने टाटा कॉलेज के नाम से एक शानदार बिल्डिंग बनवा दिया। उस समय टाटा कॉलेज की भव्यता को टक्कर देनेवाला कोई दूसरा कॉलेज कोल्हान में नहीं था। साईंस की पढ़ाई तथा तब का प्रयोगशाला बहुत बढ़िया था। जो अब घटिया हो गया। फिल्हाल टाटा कॉलेज में 28 फैकल्टीज तथा कुल नामांकित विद्यार्थियों की संख्या 5010 है। कोल्हान यूनिवर्सिटी भी इसी कैंपस में बना है।    


38 एकड़ जमीन पर बना है आलीशान व शानदार कॉलेज


टाटा कॉलेज का शानदार बिल्डिंग 38 एकड़ जमीन पर बना है। आर्ट्स व साइंस ब्लॉक के लिए शानदार भवन बनाए गये। पीजी डिपार्टमेंट के लिए बगल में एक भव्य इमारत बनाई गयी थी जहां अब कोल्हान यूनिवर्सिटी खड़ा है। 

साथ ही बॉडी बिल्डिंग के लिए एक जिम भी बनाया गया था जो अब भूतहा खंडहर में तब्दील है। जिम में कॉलेज के बाहर के लोग भी बॉडी बनाते थे। इंडोर गेम के लिए विशालकाय भवन (कॉमन रूम) भी बनाया गया जो आज भी है। जिसमें विद्यार्थी टेबल टेनिस, कैरम आदि खेलते थे। इसी भवन के अंदर प्रत्येक शनिवार को दो बार परदे पर फिल्म भी दिखाई जाती थी जिसे देखने के लिए हजारों की भीड़ जुटती थी। लेकिन अब ये सब खत्म हो चुका है। इसके अलावा कैंपस में बास्केटबाल कोर्ट, फुटबॉल प्ले ग्राऊंड की सुविधा भी है। 


पहले सांसद फिर विधायक तथा कैबिनेट मंत्री भी रहे


पूर्णचंद्र बिरूवा राजनीति में भी उतरे और बिहार सरकार में वन मंत्री भी रहे। पीसी बिरूवा 1949 से 1952 तक भारत के प्रोविजनल पार्लियामेंट के सदस्य रहे। वे 1969 में मझगांव (मंझारी) विस सीट से विधायक चुने गये थे। उसने 18176 वोट लाकर निकटतम प्रतिद्वंदी नारायण पाट पिंगुवा को बुरी तरह से हराया था। तब पूर्णचंद्र बिरूवा की ख्याति गांव गांव मे फैली हुई थी। वे नामचीन हस्ती थे।

 इस दौरान उनकी छवि हमेशा विवादों से परे रही। 


कॉलेज के लिए स्थानीय रैयतों ने दान की थी जमीन


 टाटा कॉलेज बिल्डिंग बनाने के लिए कई स्थानीय रैयतों ने जमीन दान में थी। जिसमें

मतकमहातु (महुलसाई), गितिलपी, हेसाबासा, किड़ीगोट के रैयत शामिल थे। ये काम भी पूर्णचंद्र बिरूवा के प्रयास से ही संभव हुआ था। सबसे अधिक जमीन महुलसाई के देवगम टाईटल वाले जमींदारों ने दी थी। 


जिला परिषद के गठन में पूर्णचंद्र बिरूवा का योगदान 


1948 में चाईबासा जिला परिषद के गठन में भी पूर्णचंद्र बिरूवा का अहम योगदान था। सत्ता विकेंद्रीकरण के लिए गठित इस परिषद में सामुचरण तुबिड चेयरमैन बनाये गये थे। सामुचरण तुबिड टोंटो प्रखंड के गाड़ाहातु के रहनेवाले थे। वे फेमस ब्यूरोक्रेट जेबी तुबिड के पिता थे।


एसीसी यूनियन लीडर भी थे पूर्णचंद्र बिरूवा


पूर्णचंद्र बिरूवा मजदूरों की आवाज भी रहे। एसीसी झींकपानी में मजदूर यूनियन के अध्यक्ष भी रहे थे। उन्होने मजदूरों की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाई। मजदूरों व कंपनी के बीच खाई को पाटा। मजदूरों के हित में अनेक कार्य किए। उस समय उनका रूतबा ही ऐसा था कि बहुत सारे पद उनको ऐसे ही ऑफर होते थे। क्योंकि उस जमाने में ग्रेजुएट हो लोगों की संख्या नगण्य थी। 


टाटा कॉलेज की प्रबंध समिति के प्रथम सचिव भी रहे


टाटा कॉलेज की स्थापना के बाद उसको सुचारू रूप से चलाने के लिए एक प्रबंध समिति बनाई गयी। पूर्णचंद्र बिरूवा इसके प्रथम सचिव बनाए गये। लंबे समय तक इस पद पर रहे और कॉलेज को सुचारू ढंग से चलाया। 


बिल्डिंग बनने से पहले जिला स्कूल फिर रूंगटा स्कूल में चलता था कॉलेज


कहा जाता है कि जब बिल्डिंग नहीं बनी थी तो टाटा कॉलेज को अस्थायी रूप से पहले जिला स्कूल चाईबासा तथा फिर रूंगटा स्कूल चाईबासा में चलाया गया था। जब टाटा कंपनी ने बिल्डिंग बनाकर दी तो उसमें कॉलेज शिफ्ट किया गया। इसके बाद आदिवासी बहुल कोल्हान के इस हिस्से में मानो शैक्षणिक क्रांति आ गयी। ग्रामीणों ने पहली बार कॉलेज देखा। आज आलम ये है कि बड़ी संख्या में हर साल विद्यार्थी यहां से डिग्री लेकर निकलते हैं। 


टाटा कॉलेज की स्थापना में इनका भी योगदान है


तत्कालीन उपायुक्त बालेश्वर प्रसाद, जिला निरीक्षक संत प्रसाद, उद्योगपति सीताराम रूंगटा, जैन परिवार, अधिवक्ता तारकनाथ राय, फादर नैंस, फादर नीऊ, सुनील सेन, नीरज बनर्जी, सत्येंद्र गुप्ता, कानूराम देवगम, ब्रजमोहन पुरती, घनश्याम पुरती, लक्ष्मण पुरती, प्रधान सावैयां, सामूचरण तुबिड, सुरेन तामसोय समेत अन्य लोगों का भी योगदान था।


चाईबासा में पूर्णचंद्र बिरूवा के नाम पर है सड़क तो टाटा कॉलेज में लगी है प्रतिमा


पूर्णचंद्र बिरूवा की याद में चाईबासा के टुंगरी में एक सड़क का नाम उसके नाम पर रखा गया है। जिसको पीसी बिरूवा पथ कहते हैं। इसके अलावा टाटा कॉलेज परिसर में उनकी एक प्रतिमा भी स्थापित है। इसकी स्थापना आदिवासी हो समाज महासभा की सेवानिवृत्त संगठन ने करवाई थी।

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